घर लौटते हुए परिंदो को देखातो ये एहसास हुआकाश ये फितरतजाने वालों में होती
Mohsin Rizwan 0
तेरी ख़ैरियत का ज़िक्र रहता है मेरी दुआओं में,मसला मोहब्बत का नहीं,फिक्र का भी है।
Mohsin Rizwan 0
इश्क़ इंसान की खास ज़रूरत है मगरइश्क़ हो जाए किसी से ये जरूरी भी नहीं
Mohsin Rizwan 0
हमारे दिल को अभी मुस्तकिल पता ना बनाहमें पता है तेरा दिल इधर लगेगा नहीं
Mohsin Rizwan 0
बात करनी थी जरूरी तो हुए है हाजिरकत्ल करने के इरादे से नहीं आए हैं
Mohsin Rizwan 0
नींद भी उड़ जाती है दिलो की महफ़िल मेंकिसी को भूल कर सो जाना इतना आसान कहां
Mohsin Rizwan 0
अब हमें देख के लगता तो नहीं लेकिनहम कभी उसके पसंदीदा हुआ करते थे
Mohsin Rizwan 0
ख़ुशी से दूर तेरे ग़म के पास बैठा हूंबड़े सुकून से घर में उदास बैठा हूं
Mohsin Rizwan 0
हमने दुनिया में इज्ज़त कमाई हैताल्लुकात तुम जनाजे में देखना
Mohsin Rizwan 0
वो लोग किस दर्द से गुजरे होंगेजिनके हमदर्द अपने वादों से मुकरे होंगे
Mohsin Rizwan 0
फुरसत में याद करते थे वो हमेंहम नादान थे..उनकी फुरसत को मोहब्बत समझ बैठे
Mohsin Rizwan 0
रहने दो, मुझे समझने की कोशिश मत करना,मेरे किरदार को समझने के लिए दिल चाहिए — और तुम तो दिमाग़ वाले हो।
Mohsin Rizwan 0
मुझसे दामन न छुड़ा मुझको बचा के रख लेमुझसे एक रोज़ तुझे प्यार भी हो सकता है
Mohsin Rizwan 0
दे निशानी कोई ऐसी कि सदा याद रहेज़ख़्म की बात है क्या ज़ख़्म तो भर जाएँगे
Mohsin Rizwan 0
लोगों का एहसान है मुझ पर और तेरा मैं शुक्र-गुज़ारतीर-ए-नज़र से तुम ने मारा लाश उठाई लोगों ने
Mohsin Rizwan 0
ऐसे हँस हँस के न देखा करो सब की जानिबलोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं
Mohsin Rizwan 0
मुद्दत के ब'अद आज उसे देख कर 'मोहसिन'इक बार दिल तो धड़का मगर फिर सँभल गया
Mohsin Rizwan 0
कल मैं ने उस को देखा तो देखा नहीं गयामुझ से बिछड़ के वो भी बहुत ग़म से चूर था
Mohsin Rizwan 0
जो होने वाला है अब उस की फ़िक्र क्या कीजेजो हो चुका है उसी पर यक़ीं नहीं आता
Mohsin Rizwan 0
बे पिए ही शराब से नफ़रतये जहालत नहीं तो फिर क्या है
Mohsin Rizwan 0
तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझ को क्या मजालदेखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया
Mohsin Rizwan 0
इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हमकुछ इस गुनाह की भी सज़ा है तुम्हारे पास
Mohsin Rizwan 0
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती हैआज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
Mohsin Rizwan 0
भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर 'मोहसिन'आप की मर्ज़ी है चाहे जिस नज़र से देखिए
Mohsin Rizwan 0
मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सब को नहीं आताकिसी को छोड़ना हो तो मुलाक़ातें बड़ी करना
Mohsin Rizwan 0
मैं बोलता गया हूँ वो सुनता रहा ख़ामोशऐसे भी मेरी हार हुई है कभी कभी
Mohsin Rizwan 0
उन से कह दो मुझे ख़ामोश ही रहने दे 'मोहसिन'लब पे आएगी तो हर बात गिराँ गुज़रेगी
Mohsin Rizwan 0
तुम्हें तो आज की शब मेरा क़त्ल करना थाकहाँ चले हो इरादा बदल रहे हो क्या
Mohsin Rizwan 0
जान लेता हूँ हर इक चेहरे के पोशीदा नुक़ूशतुम समझते हो कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ
Mohsin Rizwan 0
क्या ज़रूरी है कि हर बात तुम्हारी मानूँबात अपनी भी कई बार न मानी मैं ने
Mohsin Rizwan 0
तुझ से कुछ और त'अल्लुक़ भी ज़रूरी है मेराये मोहब्बत तो किसी वक़्त भी मर सकती है
Mohsin Rizwan 0
तेरी आँखों के लिए इतनी सज़ा काफ़ी हैआज की रात मुझे ख़्वाब में रोता हुआ देख
Mohsin Rizwan 0
ज़ख़्म खा कर भी जो दुआएँ देकौन उस का मुक़ाबला करेगा
Mohsin Rizwan 0
जाने क्या कह रहा था वो मुझ सेमैं ने भी कह दिया कि ख़ुश हूँ मैं
Mohsin Rizwan 0
उस ने वा'दा नहीं लिया मुझ सेऔर कहता है मैं मुकर रहा हूँ
Mohsin Rizwan 0
वो जो कल तक हाँ में हाँ करता था मेरीआज तो वो भी नहीं पर आ गया है
Mohsin Rizwan 0
बस इसी उम्मीद पे होता गया बर्बाद मैंगर कभी बिखरा तो आ कर तू सँभालेगा मुझे
Mohsin Rizwan 0
तू सिर्फ़ मेरी है उस का ग़ुरूर है मुझ कोअगर ये वहम मेरा है तो कोई बात नहीं
Mohsin Rizwan 0
कैसे तुम भूल गए हो मुझे आसानी सेइश्क़ में कुछ भी तो आसान नहीं होता है
Mohsin Rizwan 0
दिल में तुम हो न जलाओ मिरे दिल को देखोमेरा नुक़सान नहीं अपना ज़ियाँ कीजिएगा
Mohsin Rizwan 0
क्यूँ न रुक रुक के आए दम मेरातुझ को देखा रुका रुका मैं ने
Mohsin Rizwan 0
कुछ तुम्हें तर्स-ए-ख़ुदा भी है ख़ुदा की वास्तेले चलो मुझ को मुसलमानो उसी काफ़िर के पास
Mohsin Rizwan 0
क्यूँ तू रोता है दिला आने दे रोज़-ए-वस्ल कोइस क़दर छेड़ूँगा उन को वो भी रो कर जाएँगे
Mohsin Rizwan 0
गाली के सिवा हाथ भी चलता है अब उन काहर रोज़ नई होती है बेदाद की सूरत
Mohsin Rizwan 0
ख़ुदा करे कि तिरी उम्र में गिने जाएँवो दिन जो हम ने तिरे हिज्र में गुज़ारे थे
Mohsin Rizwan 0
दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जातामैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ
Mohsin Rizwan 0
तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी सेलेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता
Mohsin Rizwan 0
मोहब्बत मर गई 'मोहसिन' लेकिन तुम न मानोगेमैं ये अफ़्वाह भी तुम को सुना कर देख लेता हूँ
Mohsin Rizwan 0
रिहा कर दे क़फ़स की क़ैद से घायल परिंदे कोकिसी के दर्द को इस दिल में कितने साल पालेगा
Mohsin Rizwan 0
वो तेरी भी तो पहली मोहब्बत न थी 'मोहसिन'फिर क्या हुआ अगर वो भी हरजाई बन गया
Mohsin Rizwan 0
भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हमक़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए
Mohsin Rizwan 0
हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'मोहसिन'क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया
Mohsin Rizwan 0
हाथ उठता नहीं है दिल से 'मोहसिन'हम उन्हें किस तरह सलाम करें
Mohsin Rizwan 0
मुझ में हैं गहरी उदासी के जरासीम इस क़दरमैं तुझे भी इस मरज़ में मुब्तला कर जाऊँगा
Mohsin Rizwan 0
कुछ खटकता तो है पहलू में मेरे रह रह करअब ख़ुदा जाने तेरी याद है या दिल मेरा
Mohsin Rizwan 0
हाए रे मजबूरियाँ महरूमियाँ नाकामियाँइश्क़ आख़िर इश्क़ है तुम क्या करो हम क्या करें
Mohsin Rizwan 0
मोहब्बत में हम तो जिए हैं जिएँगेवो होंगे कोई और मर जाने वाले
Mohsin Rizwan 0
जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश करऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे
Mohsin Rizwan 0
मैं तो जब मानूँ मेरा तौबा के बादकर के मजबूर पिला दे साक़ी
Mohsin Rizwan 0
ख़र्च चलेगा अब मेरा किस के हिसाब में भलासब के लिए बहुत हूँ मैं अपने लिए ज़रा नहीं
Mohsin Rizwan 0
सब मेरे बग़ैर मुतमइन हैंमैं सब के बग़ैर जी रहा हूँ
Mohsin Rizwan 0
इक शख़्स कर रहा है अभी तक वफ़ा का ज़िक्रकाश उस ज़बाँ-दराज़ का मुँह नोच ले कोई
Mohsin Rizwan 0
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमीजिस को भी देखना हो कई बार देखना
Mohsin Rizwan 0
नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिएइस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई
Mohsin Rizwan 0
कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैंहर एक से अपनी भी तबीअ'त नहीं मिलती
Mohsin Rizwan 0
मेरी ग़ुर्बत को शराफ़त का अभी नाम न देवक़्त बदला तो तिरी राय बदल जाएगी
Mohsin Rizwan 0
ढूँडता फिरता हूँ मैं 'मोहसिन' अपने आप कोआप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं
Mohsin Rizwan 0
नशा पिला के गिराना तो सब को आता हैमज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी
Mohsin Rizwan 0
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैंतू मेरा शौक़ देख मेरा इंतिज़ार देख
Mohsin Rizwan 0
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'मोहसिन'सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
Mohsin Rizwan 0
क्यूँ न ऐ शख़्स तुझे हाथ लगा कर देखूँतू मेरे वहम से बढ़ कर भी तो हो सकता है
Mohsin Rizwan 0
मुझ से तो दिल भी मोहब्बत में नहीं ख़र्च हुआतुम तो कहते थे कि इस काम में घर लगता है
Mohsin Rizwan 0
तू भी ऐ शख़्स कहाँ तक मुझे बर्दाश्त करेबार बार एक ही चेहरा नहीं देखा जाता
Mohsin Rizwan 0
बोलता हूँ तो मेरे होंट झुलस जाते हैंउस को ये बात बताने में बड़ी देर लगी
Mohsin Rizwan 0
एक मोहब्बत और वो भी नाकाम मोहब्बतलेकिन इस से काम चलाया जा सकता है
Mohsin Rizwan 0
चाँद-चेहरे मुझे अच्छे तो बहुत लगते हैंइश्क़ मैं उस से करूँगा जिसे मोहब्बत आए
Mohsin Rizwan 0
एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'मोहसिन'मैं ने इक बार कहा था मुझे डर लगता है
Mohsin Rizwan 0
बस जान गया मैं तेरी पहचान यही हैतू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता
Mohsin Rizwan 0
जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम परहँस के कहने लगा और आप को आता क्या है
Mohsin Rizwan 0
दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँबाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ
Mohsin Rizwan 0
इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहदअक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता
Mohsin Rizwan 0
जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता हैमिरी तरह से अकेला दिखाई देता है
Mohsin Rizwan 0
उतर के नाव से भी कब सफ़र तमाम हुआज़मीं पे पाँव रखा तो ज़मीन चलने लगी
Mohsin Rizwan 0
लोग देते रहे क्या क्या न दिलासे मुझ कोज़ख़्म गहरा ही सही ज़ख़्म है भर जाएगा
Mohsin Rizwan 0
तू ने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँआँखों को अब न ढाँप मुझे डूबते भी देख
Mohsin Rizwan 0
आप आए हैं हाल पूछा हैहम ने ऐसे भी ख़्वाब देखे हैं
Mohsin Rizwan 0
ग़म तो बस इतना है कि तुम्हें इल्म तक नहीं,इस दिल ने तुम्हें कितने हक़ दे रखे हैं ।
Mohsin Rizwan 0
अब और सवाल नहीं किए जाएंगे उससे,उसने जवाब ना देकर सब जवाब दे दिए।
Mohsin Rizwan 0
मोहब्बत है तुमसे बना ले मुझे अपना,कहीं बहक ना जाऊं किसी की सुंदर बातों में ,अगर कुछ खिला पिला कर मुझे क़ैद कर लिया तो ।
Mohsin Rizwan 0
भूलने को सोचा उन्हें पर भूल कहा पा रहे है,हवाओं में उनकी खुशबू फैली हुई है,अब क्या सांस लेना छोड़ दे ।
Mohsin Rizwan 0
मुझे पढ़कर अब इन लोगो को मुझसे हमदर्दी होती है,मोहब्बत तुमसे की है हमने हम पर कुछ तो तरस खाया करो ।
Mohsin Rizwan 0