Meri Shayari

घर लौटते हुए परिंदो को देखा
तो ये एहसास हुआ
काश ये फितरत
जाने वालों में होती

Mohsin Rizwan

तेरी ख़ैरियत का ज़िक्र रहता है मेरी दुआओं में,
मसला मोहब्बत का नहीं,
फिक्र का भी है।

Mohsin Rizwan

इश्क़ इंसान की खास ज़रूरत है मगर
इश्क़ हो जाए किसी से ये जरूरी भी नहीं

Mohsin Rizwan

हमारे दिल को अभी मुस्तकिल पता ना बना
हमें पता है तेरा दिल इधर लगेगा नहीं

Mohsin Rizwan

बात करनी थी जरूरी तो हुए है हाजिर
कत्ल करने के इरादे से नहीं आए हैं

Mohsin Rizwan

नींद भी उड़ जाती है दिलो की महफ़िल में
किसी को भूल कर सो जाना इतना आसान कहां

Mohsin Rizwan

अब हमें देख के लगता तो नहीं लेकिन
हम कभी उसके पसंदीदा हुआ करते थे

Mohsin Rizwan

ख़ुशी से दूर तेरे ग़म के पास बैठा हूं
बड़े सुकून से घर में उदास बैठा हूं

Mohsin Rizwan

हमने दुनिया में इज्ज़त कमाई है
ताल्लुकात तुम जनाजे में देखना

Mohsin Rizwan

वो लोग किस दर्द से गुजरे होंगे
जिनके हमदर्द अपने वादों से मुकरे होंगे

Mohsin Rizwan

फुरसत में याद करते थे वो हमें
हम नादान थे..
उनकी फुरसत को मोहब्बत समझ बैठे

Mohsin Rizwan

रहने दो, मुझे समझने की कोशिश मत करना,
मेरे किरदार को समझने के लिए दिल चाहिए — और तुम तो दिमाग़ वाले हो।

Mohsin Rizwan

मुझसे दामन न छुड़ा मुझको बचा के रख ले
मुझसे एक रोज़ तुझे प्यार भी हो सकता है

Mohsin Rizwan

दे निशानी कोई ऐसी कि सदा याद रहे
ज़ख़्म की बात है क्या ज़ख़्म तो भर जाएँगे

Mohsin Rizwan

लोगों का एहसान है मुझ पर और तेरा मैं शुक्र-गुज़ार
तीर-ए-नज़र से तुम ने मारा लाश उठाई लोगों ने

Mohsin Rizwan

ऐसे हँस हँस के न देखा करो सब की जानिब
लोग ऐसी ही अदाओं पे फ़िदा होते हैं

Mohsin Rizwan

मुद्दत के ब’अद आज उसे देख कर ‘मोहसिन’
इक बार दिल तो धड़का मगर फिर सँभल गया

Mohsin Rizwan

कल मैं ने उस को देखा तो देखा नहीं गया
मुझ से बिछड़ के वो भी बहुत ग़म से चूर था

Mohsin Rizwan

जो होने वाला है अब उस की फ़िक्र क्या कीजे
जो हो चुका है उसी पर यक़ीं नहीं आता

Mohsin Rizwan

बे पिए ही शराब से नफ़रत
ये जहालत नहीं तो फिर क्या है

Mohsin Rizwan

तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझ को क्या मजाल
देखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया

Mohsin Rizwan

इक़रार है कि दिल से तुम्हें चाहते हैं हम
कुछ इस गुनाह की भी सज़ा है तुम्हारे पास

Mohsin Rizwan

यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया

Mohsin Rizwan

भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर ‘मोहसिन’
आप की मर्ज़ी है चाहे जिस नज़र से देखिए

Mohsin Rizwan

मोहब्बत में बिछड़ने का हुनर सब को नहीं आता
किसी को छोड़ना हो तो मुलाक़ातें बड़ी करना

Mohsin Rizwan

मैं बोलता गया हूँ वो सुनता रहा ख़ामोश
ऐसे भी मेरी हार हुई है कभी कभी

Mohsin Rizwan

उन से कह दो मुझे ख़ामोश ही रहने दे ‘मोहसिन’
लब पे आएगी तो हर बात गिराँ गुज़रेगी

Mohsin Rizwan

तुम्हें तो आज की शब मेरा क़त्ल करना था
कहाँ चले हो इरादा बदल रहे हो क्या

Mohsin Rizwan

जान लेता हूँ हर इक चेहरे के पोशीदा नुक़ूश
तुम समझते हो कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूँ

Mohsin Rizwan

क्या ज़रूरी है कि हर बात तुम्हारी मानूँ
बात अपनी भी कई बार न मानी मैं ने

Mohsin Rizwan

तुझ से कुछ और त’अल्लुक़ भी ज़रूरी है मेरा
ये मोहब्बत तो किसी वक़्त भी मर सकती है

Mohsin Rizwan

तेरी आँखों के लिए इतनी सज़ा काफ़ी है
आज की रात मुझे ख़्वाब में रोता हुआ देख

Mohsin Rizwan

ज़ख़्म खा कर भी जो दुआएँ दे
कौन उस का मुक़ाबला करेगा

Mohsin Rizwan

जाने क्या कह रहा था वो मुझ से
मैं ने भी कह दिया कि ख़ुश हूँ मैं

Mohsin Rizwan

उस ने वा’दा नहीं लिया मुझ से
और कहता है मैं मुकर रहा हूँ

Mohsin Rizwan

वो जो कल तक हाँ में हाँ करता था मेरी
आज तो वो भी नहीं पर आ गया है

Mohsin Rizwan

बस इसी उम्मीद पे होता गया बर्बाद मैं
गर कभी बिखरा तो आ कर तू सँभालेगा मुझे

Mohsin Rizwan

तू सिर्फ़ मेरी है उस का ग़ुरूर है मुझ को
अगर ये वहम मेरा है तो कोई बात नहीं

Mohsin Rizwan

कैसे तुम भूल गए हो मुझे आसानी से
इश्क़ में कुछ भी तो आसान नहीं होता है

Mohsin Rizwan

दिल में तुम हो न जलाओ मिरे दिल को देखो
मेरा नुक़सान नहीं अपना ज़ियाँ कीजिएगा

Mohsin Rizwan

क्यूँ न रुक रुक के आए दम मेरा
तुझ को देखा रुका रुका मैं ने

Mohsin Rizwan

कुछ तुम्हें तर्स-ए-ख़ुदा भी है ख़ुदा की वास्ते
ले चलो मुझ को मुसलमानो उसी काफ़िर के पास

Mohsin Rizwan

क्यूँ तू रोता है दिला आने दे रोज़-ए-वस्ल को
इस क़दर छेड़ूँगा उन को वो भी रो कर जाएँगे

Mohsin Rizwan

गाली के सिवा हाथ भी चलता है अब उन का
हर रोज़ नई होती है बेदाद की सूरत

Mohsin Rizwan

ख़ुदा करे कि तिरी उम्र में गिने जाएँ
वो दिन जो हम ने तिरे हिज्र में गुज़ारे थे

Mohsin Rizwan

दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता
मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ

Mohsin Rizwan

तन्हाई में करनी तो है इक बात किसी से
लेकिन वो किसी वक़्त अकेला नहीं होता

Mohsin Rizwan

मोहब्बत मर गई ‘मोहसिन’ लेकिन तुम न मानोगे
मैं ये अफ़्वाह भी तुम को सुना कर देख लेता हूँ

Mohsin Rizwan

रिहा कर दे क़फ़स की क़ैद से घायल परिंदे को
किसी के दर्द को इस दिल में कितने साल पालेगा

Mohsin Rizwan

वो तेरी भी तो पहली मोहब्बत न थी ‘मोहसिन’
फिर क्या हुआ अगर वो भी हरजाई बन गया

Mohsin Rizwan

भूले हैं रफ़्ता रफ़्ता उन्हें मुद्दतों में हम
क़िस्तों में ख़ुद-कुशी का मज़ा हम से पूछिए

Mohsin Rizwan

हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ ‘मोहसिन’
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया

Mohsin Rizwan

हाथ उठता नहीं है दिल से ‘मोहसिन’
हम उन्हें किस तरह सलाम करें

Mohsin Rizwan

मुझ में हैं गहरी उदासी के जरासीम इस क़दर
मैं तुझे भी इस मरज़ में मुब्तला कर जाऊँगा

Mohsin Rizwan

कुछ खटकता तो है पहलू में मेरे रह रह कर
अब ख़ुदा जाने तेरी याद है या दिल मेरा

Mohsin Rizwan

हाए रे मजबूरियाँ महरूमियाँ नाकामियाँ
इश्क़ आख़िर इश्क़ है तुम क्या करो हम क्या करें

Mohsin Rizwan

मोहब्बत में हम तो जिए हैं जिएँगे
वो होंगे कोई और मर जाने वाले

Mohsin Rizwan

जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश कर
ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे

Mohsin Rizwan

मैं तो जब मानूँ मेरा तौबा के बाद
कर के मजबूर पिला दे साक़ी

Mohsin Rizwan

ख़र्च चलेगा अब मेरा किस के हिसाब में भला
सब के लिए बहुत हूँ मैं अपने लिए ज़रा नहीं

Mohsin Rizwan

सब मेरे बग़ैर मुतमइन हैं
मैं सब के बग़ैर जी रहा हूँ

Mohsin Rizwan

इक शख़्स कर रहा है अभी तक वफ़ा का ज़िक्र
काश उस ज़बाँ-दराज़ का मुँह नोच ले कोई

Mohsin Rizwan

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना

Mohsin Rizwan

नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए
इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई

Mohsin Rizwan

कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं
हर एक से अपनी भी तबीअ’त नहीं मिलती

Mohsin Rizwan

मेरी ग़ुर्बत को शराफ़त का अभी नाम न दे
वक़्त बदला तो तिरी राय बदल जाएगी

Mohsin Rizwan

ढूँडता फिरता हूँ मैं ‘मोहसिन’ अपने आप को
आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूँ मैं

Mohsin Rizwan

नशा पिला के गिराना तो सब को आता है
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी

Mohsin Rizwan

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मेरा इंतिज़ार देख

Mohsin Rizwan

ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम ‘मोहसिन’
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है

Mohsin Rizwan

क्यूँ न ऐ शख़्स तुझे हाथ लगा कर देखूँ
तू मेरे वहम से बढ़ कर भी तो हो सकता है

Mohsin Rizwan

मुझ से तो दिल भी मोहब्बत में नहीं ख़र्च हुआ
तुम तो कहते थे कि इस काम में घर लगता है

Mohsin Rizwan

तू भी ऐ शख़्स कहाँ तक मुझे बर्दाश्त करे
बार बार एक ही चेहरा नहीं देखा जाता

Mohsin Rizwan

बोलता हूँ तो मेरे होंट झुलस जाते हैं
उस को ये बात बताने में बड़ी देर लगी

Mohsin Rizwan

एक मोहब्बत और वो भी नाकाम मोहब्बत
लेकिन इस से काम चलाया जा सकता है

Mohsin Rizwan

चाँद-चेहरे मुझे अच्छे तो बहुत लगते हैं
इश्क़ मैं उस से करूँगा जिसे मोहब्बत आए

Mohsin Rizwan

एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई ‘मोहसिन’
मैं ने इक बार कहा था मुझे डर लगता है

Mohsin Rizwan

बस जान गया मैं तेरी पहचान यही है
तू दिल में तो आता है समझ में नहीं आता

Mohsin Rizwan

जो कहा मैं ने कि प्यार आता है मुझ को तुम पर
हँस के कहने लगा और आप को आता क्या है

Mohsin Rizwan

दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ

Mohsin Rizwan

इश्क़ नाज़ुक-मिज़ाज है बेहद
अक़्ल का बोझ उठा नहीं सकता

Mohsin Rizwan

जहाँ तलक भी ये सहरा दिखाई देता है
मिरी तरह से अकेला दिखाई देता है

Mohsin Rizwan

उतर के नाव से भी कब सफ़र तमाम हुआ
ज़मीं पे पाँव रखा तो ज़मीन चलने लगी

Mohsin Rizwan

लोग देते रहे क्या क्या न दिलासे मुझ को
ज़ख़्म गहरा ही सही ज़ख़्म है भर जाएगा

Mohsin Rizwan

तू ने कहा न था कि मैं कश्ती पे बोझ हूँ
आँखों को अब न ढाँप मुझे डूबते भी देख

Mohsin Rizwan

आप आए हैं हाल पूछा है
हम ने ऐसे भी ख़्वाब देखे हैं

Mohsin Rizwan

ग़म तो बस इतना है कि तुम्हें इल्म तक नहीं,
इस दिल ने तुम्हें कितने हक़ दे रखे हैं ।

Mohsin Rizwan

अब और सवाल नहीं किए जाएंगे उससे,
उसने जवाब ना देकर सब जवाब दे दिए।

Mohsin Rizwan

मोहब्बत है तुमसे बना ले मुझे अपना,
कहीं बहक ना जाऊं किसी की सुंदर बातों में ,
अगर कुछ खिला पिला कर मुझे क़ैद कर लिया तो ।

Mohsin Rizwan

भूलने को सोचा उन्हें पर भूल कहा पा रहे है,
हवाओं में उनकी खुशबू फैली हुई है,
अब क्या सांस लेना छोड़ दे ।

Mohsin Rizwan

मुझे पढ़कर अब इन लोगो को मुझसे हमदर्दी होती है,
मोहब्बत तुमसे की है हमने हम पर कुछ तो तरस खाया करो ।

Mohsin Rizwan

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