Meri Kahani

थोड़ा सा थक गया हूं में
इसलिए ज्यादा बोलना छोड़ दिया है
इसका मतलब ये नहीं कि
मैने रिश्ता निभाना छोड़ दिया है
अक्सर रिश्तों में अजीब सी दूरियां बढ़ जाती है
लेकिन ऐसा नहीं है
कि मैने आपसे बात करना छोड़ दिया है
हां में अकेला महसूस करता
खुद को आपके बिना
पर ऐसा भी नहीं है
कि मैने अपनापन छोड़ दिया है
याद तो करता हूं में आपको बहुत
परवाह भी करता हूं
मगर कब करता हूं
कितना करता हूं
बस अब ये बताना भी छोड़ दिया है

Mohsin Rizwan

दुनिया की सबसे घटिया फ़ीलिंग पता है क्या होती है?
हमें ये पता है कि जिसे हम चाह रहे हैं,
उसे हम कभी पा नहीं सकते।
और उससे भी बुरा ये कि,
हमें उसे चाहने की आदत हो गई है।
अब हम चाहकर भी किसी और को चाह नहीं सकते — आपके अलावा।
बड़ा अजीब हादसा है ये।

Mohsin Rizwan

Mohsin, जब कोई अपना आपको छोड़ कर चला जाता है,
तो वो pain कभी पूरी तरह recovered नहीं होता।
आप उसे कभी भूल नहीं पाते,
बस… आगे बढ़ते जाते हैं। ज़िंदगी चलती रहती है,
लोग आते हैं, जाते हैं,
सूरज निकलता है, दिन पूरा होता है,
फिर रात आती है और उसके बाद एक नई सुबह। सब कुछ चलता रहता है…
सब कुछ होता है… सब रहते हैं… लेकिन…
जिसे पलट-पलट कर देखने की आदत होती है ना —
बस वो नहीं होता। और यही सबसे दर्दनाक एहसास होता है।

Mohsin Rizwan

अगर आप वाक़ई एक सुकूनभरी ज़िंदगी जीना चाहते हैं,
अगर आप सच में चाहते हैं कि life में peace हो,
हर दिन सुकून से बीते —
तो हमेशा seerat को surat से पहले रखिए।
क्योंकि एक खूबसूरत चेहरा कुछ पल लुभा सकता है,
लेकिन एक अच्छा दिल उम्रभर आपका साया बन जाता है।
जिस इंसान का nature, behaviour, और dedication साफ हो,
जिसके हाव-भाव में ईमानदारी हो —
वो रिश्ता हमेशा टिकता है, वो साथ सच्चा होता है।
अगर आपने इस सोच को अपनी priority बना लिया,
तो आपकी ज़िंदगी सिर्फ ख़ूबसूरत नहीं,
बल्कि खुशगवार और सुकूनभरी बन जाएगी।
क्योंकि समझदार और mature लोग,
हमेशा seerat को पहले चुनते हैं,
क्योंकि असली मोहब्बत चेहरों से नहीं, किरदारों से होती है।

Mohsin Rizwan

मैंने कभी ये नहीं चाहा कि मेरी कोई बात तुम्हें तकलीफ़ दे।
उस वक़्त जो कहा, वो मेरी बेचैनी थी, मेरा दर्द था — बद्दुआ नहीं। मैं तुम्हारे लिए सिर्फ़ दुआ मांग सकता हूँ,
क्योंकि मोहब्बत अगर सच्ची हो, तो किसी की तकलीफ़ मांगना गुनाह है। अगर मेरी बात ने तुम्हें दुख दिया हो, तो दिल से माफ़ी चाहता हूँ। ना मेरी नीयत ग़लत थी, ना जज़्बात,
बस अल्फ़ाज़ संभल नहीं पाए — और शायद तुमसे दूर कर दिए। तुमसे बात करना, तुम्हारा मुस्कुराना — यही मेरी राहत है।
अगर तुम्हें लगे कि मेरी माफ़ी काबिल-ए-कबूल है, तो एक बार बात कर लो। मैं वादा करता हूँ, सिर्फ़ सुकून की बात होगी… कोई शिकवा नहीं। तुमसे कुछ पाने की उम्मीद नहीं रखता,
बस इतनी मोहलत दे दो कि मैं खुद को तुम्हारे सामने ठीक कर सकूँ।

Mohsin Rizwan

शायद मेरे अल्फ़ाज़ भारी हो गए, पर मेरा इरादा कभी तुम्हें दुख देने का नहीं था।
मैंने मोहब्बत में जो महसूस किया, वही कह दिया… लेकिन अब समझ आया,
कभी-कभी जज़्बात भी संभाल कर पेश करने पड़ते हैं।
तुम्हें दुख पहुँचा — इसके लिए माफ़ी नहीं, पश्चाताप है।
मैं बद्दुआ कैसे दे सकता हूँ जिसे मैं रोज़ दुआओं में माँगता हूँ?
अगर मेरे लफ़्ज़ तुम्हारे दिल को लगे हों,
तो उन्हें मेरी नासमझ मोहब्बत समझ कर माफ़ कर दो।
मैं अब भी वहीं हूँ… जहाँ तुमने छोड़ा था — इंतज़ार में।
ना कोई शिकायत, ना कोई सवाल। बस दुआ करता हूँ कि तुम्हें सुकून मिले।

Mohsin Rizwan

मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ, बिना किसी शर्त के।
मगर अगर ये रिश्ता आगे नहीं बढ़ सकता,
तो मुझे खुद को पीछे खींचना पड़ेगा…
ताकि तुम्हें तकलीफ़ ना हो। बस एक गुज़ारिश है —
अगर कभी दिल करे तो मुझे याद ज़रूर कर लेना।
मैं वहीं मिलूंगा… उसी मोहब्बत के साथ,
जिसे तुमने कभी समझा तो था… पर अपनाया नहीं।

Mohsin Rizwan

Dear, अगर तुम्हें कभी लगे कि मैं तुम्हें मिस करने लायक भी नहीं हूं…
तो बस एक गुज़ारिश है —
मुझे थोड़ा सा वक़्त दे देना, बस थोड़ा सा।
क्योंकि “मिस करना” तो बहुत दूर की बात है,
अब तो मैंने तुम्हारा नाम भी अपने ज़हन से मिटाना शुरू कर दिया है।
इतना कि एक दिन खुद से पूछ बैठूंगा —
“क्या वाक़ई कभी कोई Dear थी मेरी ज़िंदगी में?”
और फिर धीरे-धीरे
ना सिर्फ तुम्हें,
बल्कि खुद को भी भूल जाऊंगा…
शायद उस रोज़ आईने में देखकर
खुद से पूछूं,
“क्या मैं ही मोहसिन हूं?”
क्योंकि जब किसी को बेपनाह चाहो और
वो तुम्हें किसी लायक न समझे,
तो मोहब्बत नहीं,
बस एक सज़ा बन जाती है।
तो Dear,
अगर तुम मेरा होना नहीं समझ पाई,
तो यकीन मानो —
मैं अपना होना भी खो दूंगा।
बस थोड़ा वक़्त दे देना… ताकि मैं मोहब्बत से मोहसिन को अलग कर सकूं।

Mohsin Rizwan

मेरा ना तो इतना वजूद है, और ना ही इतनी औकात…
जो मैं तुमसे ग़ुस्सा कर सकूं।
मैं अब उस मोड़ पर आ गया हूं जहां
मैं तुम्हारी नज़रों में, तुम्हारे वजूद में कहीं खो गया हूं।
अब अगर तुम्हारा दिल चाहे,
तो तुम मुझे याद कर सकती हो… बात कर सकती हो।
और अगर ना चाहे…
तो मेरा इंतज़ार भी कोई मायने नहीं रखता।
मुझे अब मोहब्बत भी तुम्हारे हुक्म से करनी है,
तुम्हारी मर्ज़ी हो तो “मुझे मिस करो”,
वरना मेरी ये फुज़ूल ख्वाहिश भी बगैर इजाज़त के गुनाह मानी जाएगी।
मैं जानता हूं अगर मैंने कभी तुम्हारे बिना इजाज़त के
तुम्हें याद कर लिया…
या दिल से कोई बात कह दी…
तो शायद मेरी औकात तुम्हें खुद-ब-खुद समझ आ जाएगी।
इसलिए अब मैंने खामोश रहना सीख लिया है।
क्योंकि मोहब्बत अब भी है,
मगर हक़ अब भी तुम्हारा है।

Mohsin Rizwan

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