Mohsin Shayari

जिसे क़दर नहीं थी जज़्बातों की
उसे इश्क़ क्या, इंसानियत भी कहाँ आती है

Mohsin Rizwan

इश्क़ उस मोड़ पर लाकर छोड़ गया
जहां ना ख़ुदा मिला, ना ख़ुदा की कसम

Mohsin Rizwan

तुझसे मिलकर भी अधूरा रह गया
शायद मुकम्मल चीज़ें रूह को नहीं भातीं

Mohsin Rizwan

मोहब्बत को जब इबादत समझा
तो हर बेवफ़ाई को भी तक़दीर मान लिया

Mohsin Rizwan

मेरी रूह ने जब भी सुकून माँगा
तेरी याद ने फिर से बेचैन कर दिया

Mohsin Rizwan

हमसे वादे नहीं, वक़्त माँग लेता
हम खुद को भी भुला देते उसके लिए

Mohsin Rizwan

मैं उसे चाहता रहा बेइंतिहा
और वो मुझे आज़माता रहा बेपरवाह

Mohsin Rizwan

अब कोई दर्द नया नहीं लगता
जब से उसे देखा था जाते हुए

Mohsin Rizwan

ताज्जुब नहीं कि वो बदल गया
मोहब्बत में लोग अक्सर खुदा बन जाते हैं

Mohsin Rizwan

अब किसी से इश्क़ नहीं करते
कि मोहब्बत से ज़्यादा यादें तकलीफ़ देती हैं

Mohsin Rizwan

उसने कहा — “तू बहुत अच्छा है”
और यही कहकर किसी और का हो गया

Mohsin Rizwan

उसे पा भी जाता तो क्या हासिल होता
मोहब्बत तो मुकम्मल ही तब लगती है जब अधूरी रह जाए

Mohsin Rizwan

उस बेवफ़ा ने जब रुख़्सत लिया
तब एहसास हुआ कि मोहब्बत का वजूद क्या होता है

Mohsin Rizwan

हर सवाल का जवाब नहीं होता
कुछ खामोशियाँ भी गवाही देती हैं

Mohsin Rizwan

रूह तक उतर गया है अब तन्हा रहना
जिस्म तो बस दुनिया का नकाब है

Mohsin Rizwan

उस शख़्स को क्या खबर मेरी तासीर की
जो हर दर्द को फिजूल समझ कर चला गया

Mohsin Rizwan

नक्श-ए-क़दम मिटा दिए मैंने
ताकि कोई फिर मोहब्बत न ढूंढे मुझमें

Mohsin Rizwan

उसने इल्ज़ाम भी ख़ुद पे लिया
मगर उस दर्द का हिसाब न दिया

Mohsin Rizwan

मेरी तन्हाई से जो शख़्स वाकिफ़ था
वही आज सबसे ज़्यादा ग़ैर निकला

Mohsin Rizwan

मैंने मोहब्बत को इबादत समझा
और उसने दुआओं में भी मेरा ज़िक्र नहीं किया

Mohsin Rizwan

वक़्त की गर्द में छुप गई है हक़ीक़त मेरी
और लोग आज भी किरदार पर शक करते हैं

Mohsin Rizwan

टूट कर भी जुड़ नहीं पाया दिल
शायद दरारें गहरी थीं बहुत

Mohsin Rizwan

अब ख्वाबों में भी डर सा लगता है
कहीं फिर से वही चेहरा न दिख जाए

Mohsin Rizwan

उसकी तस्वीर अब भी कमरे में है
लेकिन चेहरा धुंधला पड़ने लगा है

Mohsin Rizwan

वो कहता रहा — सब ठीक हो जाएगा
और मैं अंदर ही अंदर बिखरता गया

Mohsin Rizwan

उसे खोकर भी जी रहा हूँ
शायद यही हुनर मोहब्बत का होता है

Mohsin Rizwan

उसने जिस अंदाज़ से अलविदा कहा
लगा जैसे मैं कभी था ही नहीं

Mohsin Rizwan

लोग चेहरे देख कर मोहब्बत करते हैं
और में दिल देख कर तनहा हो गया

Mohsin Rizwan

मैं उसे भूल गया ये झूठ है
बस अब नाम नहीं लेता

Mohsin Rizwan

लोग कहते हैं वक़्त सब बदल देता है
लेकिन कुछ यादें वक़्त के साथ पक्की हो जाती हैं

Mohsin Rizwan

एक पल को सोचा था उसके बिना जी लेंगे
फिर साँसों ने इंकार कर दिया

Mohsin Rizwan

चाहा था जिससे वो ही सबक बन गया
अब इश्क़ से डर सा लगता है

Mohsin Rizwan

मैंने आँसू भी मुस्कान में छिपा लिए
ताकि लोग ये न समझें कि मैं टूटा हूँ

Mohsin Rizwan

मोहब्बत की थी, इसलिए दर्द मिला
समझदारी से करते तो सुकून मिलता

Mohsin Rizwan

हर जुम्ला उसका जहर बन गया
और मैं लफ़्ज़-लफ़्ज़ मरता रहा

Mohsin Rizwan

बेवफ़ाई उसकी आदत नहीं थी शायद
मगर मेरी वफ़ा उससे निभाई न गई

Mohsin Rizwan

अब शिकवा भी नहीं है तुझसे
तू जो भी था, बस लम्हा था मेरी ज़िंदगी का

Mohsin Rizwan

अब शायरियाँ नहीं लिखता मैं
कि हर मिसरा उसी पर ख़त्म होता है

Mohsin Rizwan

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