मैंने कभी नहीं चाहा था कि तुम्हें इस तरह लफ़्ज़ों में ढालूं…क्योंकि मैं हमेशा चाहता था —तुम लफ़्ज़ों से आगे हो, मेरी ज़िन्दगी में शामिल रहो।मैंने तुमसे सिर्फ़ एक रिश्ता नहीं माँगा…बल्कि हर उस ख्वाब में तुम्हारा नाम लिखा,जो मैंने खुली आँखों से देखा।मैं तुम्हें दुनिया की हर ख़ुशी देना चाहता था।तुम्हारे लिए खुद को भी भुला दिया।हर दिन, हर वक़्त तुम्हारे बारे में ही सोचता रहा।तुम्हें याद करता रहा —तब भी जब तुमने कहा, "मुझे याद मत किया करो…"और जब तुमने उल्टा पूछा, "आज मिस नहीं किया?"तो वही जवाब दिया — जो तुमने सिखाया था।पर वो भी तुम्हें बुरा लगा।मैं समझ नहीं पाया —तुम्हारी मोहब्बत की हद क्या है, और मैं कहाँ खड़ा हूँ।मैंने चाहा था कि तुम मेरी दुल्हन बनो,जिसके साथ मैं हर लम्हा जिऊँ,हर मुश्किल में उसका हाथ थामूं।लेकिन तुमने एक दिन कहा —"दुनिया की सारी ताक़त भी लगा लो, तो भी तुम मुझे हासिल नहीं कर सकते।"तुम्हारा वो लफ्ज़ सीधा मेरे सीने में उतर गया…और वहीं कुछ टूट गया,जो अब तक सिर्फ़ तुम्हारे नाम पर धड़क रहा था।मैं गिरा नहीं था मोहब्बत में,बल्कि उठकर रोज़ तुम्हारे लिए दुआ करता था।पर आज, मैं थक चुका हूं…अब हर बार तुम्हारा "Hi"खुश नहीं करता — दर्द देता है।अब तुम्हारा आना,मुझे जीने नहीं देता…और तुम्हारा जाना,मुझे रोज़ थोड़ा-थोड़ा मारता है।तुमने जब चाहा बात की,जब चाहा ख़ामोश हो गईं।और मैं?हमेशा वहीं रहा — एक ही जगह —सिर्फ़ तुम्हारे लिए।अब नहीं…अब मैं तुम्हें आज़ाद करता हूँ।तुम अपना रिश्ता निभाओ,किसी और से मोहब्बत करो,शादी करो,उसे टूटकर चाहो —जैसे मैंने तुम्हें किया।मैंने तुमसे सच्चा प्यार किया,और ये मोहब्बत हमेशा रहेगी…पर अब तुम्हें नहीं,खुद को बचाना है।अब मैं हर रात online नहीं रहूँगासिर्फ़ तुम्हारे message के इंतज़ार में।अब मैं खुद से मोहब्बत करूंगा।पर अगर कभी किसी मोड़ पर मुलाक़ात हो जाए,तो इतना याद रख लेना —"जिसने तुम्हें सबसे सच्चे दिल से चाहा था… जिसने अपनी रूह तक तुम्हारे नाम कर दी थी… वो मोहसिन था। और अब वो सिर्फ़ अपनी इज़्ज़त के लिए खामोश है।"— Mohsin Rizwan
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थोड़ा सा थक गया हूं मेंइसलिए ज्यादा बोलना छोड़ दिया हैइसका मतलब ये नहीं किमैने रिश्ता निभाना छोड़ दिया हैअक्सर रिश्तों में अजीब सी दूरियां बढ़ जाती हैलेकिन ऐसा नहीं हैकि मैने आपसे बात करना छोड़ दिया हैहां में अकेला महसूस करताखुद को आपके बिनापर ऐसा भी नहीं हैकि मैने अपनापन छोड़ दिया हैयाद तो करता हूं में आपको बहुतपरवाह भी करता हूंमगर कब करता हूंकितना करता हूंबस अब ये बताना भी छोड़ दिया है
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दुनिया की सबसे घटिया फ़ीलिंग पता है क्या होती है?हमें ये पता है कि जिसे हम चाह रहे हैं,उसे हम कभी पा नहीं सकते।और उससे भी बुरा ये कि,हमें उसे चाहने की आदत हो गई है।अब हम चाहकर भी किसी और को चाह नहीं सकते — आपके अलावा।बड़ा अजीब हादसा है ये।
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Mohsin, जब कोई अपना आपको छोड़ कर चला जाता है,तो वो pain कभी पूरी तरह recovered नहीं होता।आप उसे कभी भूल नहीं पाते,बस... आगे बढ़ते जाते हैं। ज़िंदगी चलती रहती है,लोग आते हैं, जाते हैं,सूरज निकलता है, दिन पूरा होता है,फिर रात आती है और उसके बाद एक नई सुबह। सब कुछ चलता रहता है...सब कुछ होता है... सब रहते हैं... लेकिन...जिसे पलट-पलट कर देखने की आदत होती है ना —बस वो नहीं होता। और यही सबसे दर्दनाक एहसास होता है।
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अगर आप वाक़ई एक सुकूनभरी ज़िंदगी जीना चाहते हैं,अगर आप सच में चाहते हैं कि life में peace हो,हर दिन सुकून से बीते —तो हमेशा seerat को surat से पहले रखिए।क्योंकि एक खूबसूरत चेहरा कुछ पल लुभा सकता है,लेकिन एक अच्छा दिल उम्रभर आपका साया बन जाता है।जिस इंसान का nature, behaviour, और dedication साफ हो,जिसके हाव-भाव में ईमानदारी हो —वो रिश्ता हमेशा टिकता है, वो साथ सच्चा होता है।अगर आपने इस सोच को अपनी priority बना लिया,तो आपकी ज़िंदगी सिर्फ ख़ूबसूरत नहीं,बल्कि खुशगवार और सुकूनभरी बन जाएगी।क्योंकि समझदार और mature लोग,हमेशा seerat को पहले चुनते हैं,क्योंकि असली मोहब्बत चेहरों से नहीं, किरदारों से होती है।
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मैंने कभी ये नहीं चाहा कि मेरी कोई बात तुम्हें तकलीफ़ दे।उस वक़्त जो कहा, वो मेरी बेचैनी थी, मेरा दर्द था — बद्दुआ नहीं। मैं तुम्हारे लिए सिर्फ़ दुआ मांग सकता हूँ,क्योंकि मोहब्बत अगर सच्ची हो, तो किसी की तकलीफ़ मांगना गुनाह है। अगर मेरी बात ने तुम्हें दुख दिया हो, तो दिल से माफ़ी चाहता हूँ। ना मेरी नीयत ग़लत थी, ना जज़्बात,बस अल्फ़ाज़ संभल नहीं पाए — और शायद तुमसे दूर कर दिए। तुमसे बात करना, तुम्हारा मुस्कुराना — यही मेरी राहत है।अगर तुम्हें लगे कि मेरी माफ़ी काबिल-ए-कबूल है, तो एक बार बात कर लो। मैं वादा करता हूँ, सिर्फ़ सुकून की बात होगी... कोई शिकवा नहीं। तुमसे कुछ पाने की उम्मीद नहीं रखता,बस इतनी मोहलत दे दो कि मैं खुद को तुम्हारे सामने ठीक कर सकूँ।
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शायद मेरे अल्फ़ाज़ भारी हो गए, पर मेरा इरादा कभी तुम्हें दुख देने का नहीं था।मैंने मोहब्बत में जो महसूस किया, वही कह दिया… लेकिन अब समझ आया,कभी-कभी जज़्बात भी संभाल कर पेश करने पड़ते हैं।तुम्हें दुख पहुँचा — इसके लिए माफ़ी नहीं, पश्चाताप है।मैं बद्दुआ कैसे दे सकता हूँ जिसे मैं रोज़ दुआओं में माँगता हूँ?अगर मेरे लफ़्ज़ तुम्हारे दिल को लगे हों,तो उन्हें मेरी नासमझ मोहब्बत समझ कर माफ़ कर दो।मैं अब भी वहीं हूँ… जहाँ तुमने छोड़ा था — इंतज़ार में।ना कोई शिकायत, ना कोई सवाल। बस दुआ करता हूँ कि तुम्हें सुकून मिले।
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मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ, बिना किसी शर्त के।मगर अगर ये रिश्ता आगे नहीं बढ़ सकता,तो मुझे खुद को पीछे खींचना पड़ेगा…ताकि तुम्हें तकलीफ़ ना हो। बस एक गुज़ारिश है —अगर कभी दिल करे तो मुझे याद ज़रूर कर लेना।मैं वहीं मिलूंगा… उसी मोहब्बत के साथ,जिसे तुमने कभी समझा तो था… पर अपनाया नहीं।
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Dear, अगर तुम्हें कभी लगे कि मैं तुम्हें मिस करने लायक भी नहीं हूं…तो बस एक गुज़ारिश है —मुझे थोड़ा सा वक़्त दे देना, बस थोड़ा सा।क्योंकि "मिस करना" तो बहुत दूर की बात है,अब तो मैंने तुम्हारा नाम भी अपने ज़हन से मिटाना शुरू कर दिया है।इतना कि एक दिन खुद से पूछ बैठूंगा —"क्या वाक़ई कभी कोई Dear थी मेरी ज़िंदगी में?"और फिर धीरे-धीरेना सिर्फ तुम्हें,बल्कि खुद को भी भूल जाऊंगा…शायद उस रोज़ आईने में देखकरखुद से पूछूं,"क्या मैं ही मोहसिन हूं?"क्योंकि जब किसी को बेपनाह चाहो औरवो तुम्हें किसी लायक न समझे,तो मोहब्बत नहीं,बस एक सज़ा बन जाती है।तो Dear,अगर तुम मेरा होना नहीं समझ पाई,तो यकीन मानो —मैं अपना होना भी खो दूंगा।बस थोड़ा वक़्त दे देना… ताकि मैं मोहब्बत से मोहसिन को अलग कर सकूं।
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मेरा ना तो इतना वजूद है, और ना ही इतनी औकात…जो मैं तुमसे ग़ुस्सा कर सकूं।मैं अब उस मोड़ पर आ गया हूं जहांमैं तुम्हारी नज़रों में, तुम्हारे वजूद में कहीं खो गया हूं।अब अगर तुम्हारा दिल चाहे,तो तुम मुझे याद कर सकती हो… बात कर सकती हो।और अगर ना चाहे…तो मेरा इंतज़ार भी कोई मायने नहीं रखता।मुझे अब मोहब्बत भी तुम्हारे हुक्म से करनी है,तुम्हारी मर्ज़ी हो तो "मुझे मिस करो",वरना मेरी ये फुज़ूल ख्वाहिश भी बगैर इजाज़त के गुनाह मानी जाएगी।मैं जानता हूं अगर मैंने कभी तुम्हारे बिना इजाज़त केतुम्हें याद कर लिया…या दिल से कोई बात कह दी…तो शायद मेरी औकात तुम्हें खुद-ब-खुद समझ आ जाएगी।इसलिए अब मैंने खामोश रहना सीख लिया है।क्योंकि मोहब्बत अब भी है,मगर हक़ अब भी तुम्हारा है।
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