जिसे क़दर नहीं थी जज़्बातों कीउसे इश्क़ क्या, इंसानियत भी कहाँ आती है
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इश्क़ उस मोड़ पर लाकर छोड़ गयाजहां ना ख़ुदा मिला, ना ख़ुदा की कसम
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तुझसे मिलकर भी अधूरा रह गयाशायद मुकम्मल चीज़ें रूह को नहीं भातीं
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मोहब्बत को जब इबादत समझातो हर बेवफ़ाई को भी तक़दीर मान लिया
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मेरी रूह ने जब भी सुकून माँगातेरी याद ने फिर से बेचैन कर दिया
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हमसे वादे नहीं, वक़्त माँग लेताहम खुद को भी भुला देते उसके लिए
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मैं उसे चाहता रहा बेइंतिहाऔर वो मुझे आज़माता रहा बेपरवाह
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अब कोई दर्द नया नहीं लगताजब से उसे देखा था जाते हुए
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ताज्जुब नहीं कि वो बदल गयामोहब्बत में लोग अक्सर खुदा बन जाते हैं
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अब किसी से इश्क़ नहीं करतेकि मोहब्बत से ज़्यादा यादें तकलीफ़ देती हैं
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उसने कहा — “तू बहुत अच्छा है”और यही कहकर किसी और का हो गया
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उसे पा भी जाता तो क्या हासिल होतामोहब्बत तो मुकम्मल ही तब लगती है जब अधूरी रह जाए
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उस बेवफ़ा ने जब रुख़्सत लियातब एहसास हुआ कि मोहब्बत का वजूद क्या होता है
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हर सवाल का जवाब नहीं होताकुछ खामोशियाँ भी गवाही देती हैं
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रूह तक उतर गया है अब तन्हा रहनाजिस्म तो बस दुनिया का नकाब है
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उस शख़्स को क्या खबर मेरी तासीर कीजो हर दर्द को फिजूल समझ कर चला गया
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नक्श-ए-क़दम मिटा दिए मैंनेताकि कोई फिर मोहब्बत न ढूंढे मुझमें
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उसने इल्ज़ाम भी ख़ुद पे लियामगर उस दर्द का हिसाब न दिया
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मेरी तन्हाई से जो शख़्स वाकिफ़ थावही आज सबसे ज़्यादा ग़ैर निकला
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मैंने मोहब्बत को इबादत समझाऔर उसने दुआओं में भी मेरा ज़िक्र नहीं किया
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वक़्त की गर्द में छुप गई है हक़ीक़त मेरीऔर लोग आज भी किरदार पर शक करते हैं
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टूट कर भी जुड़ नहीं पाया दिलशायद दरारें गहरी थीं बहुत
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अब ख्वाबों में भी डर सा लगता हैकहीं फिर से वही चेहरा न दिख जाए
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उसकी तस्वीर अब भी कमरे में हैलेकिन चेहरा धुंधला पड़ने लगा है
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वो कहता रहा — सब ठीक हो जाएगाऔर मैं अंदर ही अंदर बिखरता गया
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उसे खोकर भी जी रहा हूँशायद यही हुनर मोहब्बत का होता है
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उसने जिस अंदाज़ से अलविदा कहालगा जैसे मैं कभी था ही नहीं
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लोग चेहरे देख कर मोहब्बत करते हैंऔर में दिल देख कर तनहा हो गया
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मैं उसे भूल गया ये झूठ हैबस अब नाम नहीं लेता
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लोग कहते हैं वक़्त सब बदल देता हैलेकिन कुछ यादें वक़्त के साथ पक्की हो जाती हैं
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एक पल को सोचा था उसके बिना जी लेंगेफिर साँसों ने इंकार कर दिया
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चाहा था जिससे वो ही सबक बन गयाअब इश्क़ से डर सा लगता है
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मैंने आँसू भी मुस्कान में छिपा लिएताकि लोग ये न समझें कि मैं टूटा हूँ
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मोहब्बत की थी, इसलिए दर्द मिलासमझदारी से करते तो सुकून मिलता
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हर जुम्ला उसका जहर बन गयाऔर मैं लफ़्ज़-लफ़्ज़ मरता रहा
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बेवफ़ाई उसकी आदत नहीं थी शायदमगर मेरी वफ़ा उससे निभाई न गई
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अब शिकवा भी नहीं है तुझसेतू जो भी था, बस लम्हा था मेरी ज़िंदगी का
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अब शायरियाँ नहीं लिखता मैंकि हर मिसरा उसी पर ख़त्म होता है
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